चारों वेदों का संपूर्ण ज्ञान | जानिए चारों वेदों में क्या लिखा है

चारों वेदों का संपूर्ण ज्ञान | जानिए चारों वेदों में क्या लिखा है

दोस्तो हमारे सनातन धर्म के अनुसार वेद दुनिया के प्रथम धर्मग्रंथ है |  इसका संकलन महर्षि कृष्ण व्यास द्वैपाजन जी ने किया था। जिने हम महर्षि वेदव्यास के नाम से भी जानते है | सामान्य भाषा में वेद का अर्थ होता है ज्ञान | वेद ईश्वर द्वारा ऋषियों को सुनाए गए ज्ञान पर आधारित है इसीलिए इसे श्रुति कहा गया है | वेद ज्ञान विज्ञान का भंडार है और इसमें मानव की हर समस्या का समाधान है।

वेदों में लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है जैसे की देवी,देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, रीति-रिवाज आदि।

हमारे शास्रोमे 4 वेदोंका उल्लेख किया है जिसमे ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद है

१)  ऋग्वेद

  1. ऋग्वेद सबसे प्राचीन तथा प्रथम वेद जिसमें मन्त्रों की संख्या 10,462 है ,मंडल की संख्या 10 तथा सूक्त की संख्या 1028 है। इनके मन्त्रों में देवताओं की स्तुति की गयी है। इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं
  2. दोस्तों कहा जाता हैं की ऋग्वेद में ३३ देवी-देवताओं का उल्लेख किया गया है। इस वेद में सूर्या, उषा तथा अदिति जैसी देवियों का भी वर्णन किया है
  3. इसमें इन्द्र को सर्वमान्य तथा सबसे अधिक शक्तिशाली देवता भी माना गया है। भगवान इन्द्र की स्तुति में ऋग्वेद में २५० ऋचाएँ हैं
  4. दोस्तों भगवानो के साथ लगभग २५ नदियों का भी उल्लेख किया गया है जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी सिन्धु का वर्णन अधिक है।सर्वाधिक पवित्र नदी सरस्वती को माना गया है तथा सरस्वती का उल्लेख भी कई बार हुआ है। ऋग्वेद में  माँ गंगा नदी तथा यमुना नदी का भी जिक्र हुआ है।
  5. दोस्तों ऐसा कहा जाता हैं की ऋग्वेद से ही अन्य वेदों का जन्म हुआ है और सभी वेदों से उपनिषदों की रचना हुई।

2) यजुर्वेद – 

  1. दोस्तों यजुर्वेद में कार्य यानी क्रिया और यज्ञ  यानी समर्पण की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं।
  2. यजुर्वेद को ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है – इसमें ऋग्वेद के ६६३ मंत्र पाए जाते हैं। फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘’यजुस’’ कहा जाता है। यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ऋग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है।[1] इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं। कहा जाता है की यजुर्वेद में दो शाखा हैं :
    1. दक्षिण भारत में  कृष्ण यजुर्वेद शाखा से प्रचलित है  और
    2. उत्तर भारत में  शुक्ल यजुर्वेद शाखा से प्रचलित है
  3. कहा जाता है की ऋग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई थी और  यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई थी

3) सामवेद

  1. ‘साम‘ शब्द का अर्थ है ‘गान‘। सामवेद में संकलित मंत्रों को देवताओं की स्तुति के समय गाया जाता था।
  2. इस वेद का प्रमुख विषय उपासना है। संगीत में लगे शूर को गाने के लिये 1875 संगीतमय मंत्र।
  3. सामवेद गीत-संगीत प्रधान है
  4.  सामवेद चारों वेदों में आकार की दृष्टि से सबसे छोटा है और इसके १८७५ मन्त्रों मे से ९९ को छोड़ कर सभी ऋगवेद के हैं। केवल १७ मन्त्र अथर्ववेद और यजुर्वेद के पाये जाते हैं। फ़िर भी इसकी प्रतिष्ठा सर्वाधिक है, जिसका एक कारण गीता में कृष्ण द्वारा वेदानां सामवेदोऽस्मि कहना भी है।
  5. इसका नाम सामवेद इसलिये पड़ा है कि इसमें गायन-पद्धति के निश्चित मन्त्र ही हैं।
  6. इसके अधिकांश मन्त्र ऋग्वेद में उपलब्ध होते हैं, कुछ मन्त्र स्वतन्त्र भी हैं।
  7. सामवेद यद्यपि छोटा है परन्तु एक तरह से यह सभी वेदों का सार रूप है और सभी वेदों के चुने हुए अंश इसमें शामिल किये गये है
  8.  सामवेद संहिता के दो भाग हैं, आर्चिक और गान। पुराणों में जो विवरण मिलता है उससे सामवेद की एक सहस्त्र शाखाओं के होने की जानकारी मिलती है। वर्तमान में प्रपंच ह्रदय, दिव्यावदान, चरणव्युह तथा जैमिनि गृहसूत्र को देखने पर १३ शाखाओं का पता चलता है। इन तेरह में से तीन आचार्यों की शाखाएँ मिलती हैं- (१) कौथुमीय, (२) राणायनीय और (३) जैमिनीय। इसका अध्य्यन करने बाले पंडित पंचविश या उद्गाता कहलाते है।

4) अथर्ववेद

  1. इसमें गुण, धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 5977 कवितामयी मन्त्र हैं।
  2. अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई थी। अथर्ववेद के दो पाठों, शौनक और पैप्पलद, में संचरित हुए लगभग सभी स्तोत्र ऋग्वेद के स्तोत्रों के छदों में रचित हैं। दोनो वेदों में इसके अतिरिक्त अन्य कोई समानता नहीं है। अथर्ववेद दैनिक जीवन से जुड़े तांत्रिक धार्मिक सरोकारों को व्यक्त करता है, इसका स्वर ऋग्वेद के उस अधिक पुरोहिती स्वर से भिन्न है, जो महान् देवों को महिमामंडित करता है और सोम के प्रभाव में कवियों की उत्प्रेरित दृष्टि का वर्णन करता है।
  3. अथर्ववेद में ब्रह्म की उपासना संबन्धी बहुत से मन्त्र हैं।
  4. इसमें ऋग्वेद और सामवेद से भी मन्त्र लिये गये हैं।
  5. जादू से सम्बन्धित मन्त्र-तन्त्र, राक्षस, पिशाच, आदि भयानक शक्तियाँ अथर्ववेद के महत्त्वपूर्ण विषय हैं।
  6. इसमें भूत-प्रेत, जादू-टोने आदि के मन्त्र हैं।
  7. ऋग्वेद के उच्च कोटि के देवताओं को इस वेद में गौण स्थान प्राप्त हुआ है।
  8. धर्म के इतिहास की दृष्टि से ऋग्वेद और अथर्ववेद दोनों का बड़ा ही मूल्य है।
  9. अथर्ववेद से स्पष्ट है कि कालान्तर में आर्यों में प्रकृति की पूजा की उपेक्षा हो गयी थी और प्रेत-आत्माओं व तन्त्र-मन्त्र में विश्वास किया जाने लगा था।

 

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यहां सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है | यहां यह बताना जरूरी है कि The Sanatani Tales किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें |

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