तिरुपति बालाजी की कहानी | Tirupati Balaji ki kahani

तिरुपति बालाजी की कहानी | Tirupati Balaji ki kahani

नमस्कार मित्रो हर हर महादेव

भारत के आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति में तिरूमाला की पहाड़ी पर विराजमान “तिरुपति बालाजी” विश्व के सबसे प्रतिष्ठित देवी देवतायों में से एक है। तिरुपति बालाजी मंदिर समुद्र तल से 853 फीट ऊंचाई पर स्थित है और सात चोटियों से घिरा हुआ हुआ है जिस वजह से तिरुपति बालाजी मंदिर को “सात पहाडिय़ों का मंदिर” भी कहा जाता है।

 

भगवान तिरुपति बालाजी का यह मंदिर चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर भारत समेत पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। तिरुपति बालाजी का वास्तविक नाम श्री वेंकटेश्वर स्वामी है जो स्वयं भगवान विष्णु हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान श्री वेंकटेश्वर अपनी पत्नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से भगवान वेंकटेश्वर के सामने प्रार्थना करते हैं, उनकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। भक्त अपनी श्रद्धा के मुताबिक, यहां आकर तिरुपति मंदिर में अपने बाल दान करते हैं। इस अलौकिक और चमत्कारिक मंदिर से कई रहस्य जुड़े हुए हैं।

तो आइये जानते हैं तिरुपति बालाजी की कहानी इस ब्लॉग में | नमस्कार मित्रो, में हूँ आकाश और आपका सभी का स्वागत है The सनातनी टेल्स में |

हिरण्याक्ष राक्षस और भगवान वराह कहानी

एक समय में हिरण्याक्ष राक्षस ने पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया तब भगवान विष्णु ने वराह रूप में अवतार लिया। उनका यह रूप देख कर सभी ऋषि मुनियों ने भगवान की स्तुति की। सबकी प्रार्थना से प्रसन्ना होकर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी का उपयोग कर उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों और थूथनी के बीच में रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए।

जब हिरण्याक्ष ने यह देखकर भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में बहुत भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष राक्षस का वध कर दिया और पृथ्वी को वापस स्तापित कर दिया | इस घटना के बाद आदि वराह ने लोगों के कल्याण के लिए पृथ्वी लोक में रहने का फैसला किया।

कलियुग के प्रारंभ में भी भगवान आदि वराह वेंकटाद्री को छोड़कर अपने स्थायी आराध्य वैकुंठ चले गए। एक समय पर ऋषियों का समूह यज्ञ कर रहा थे | तब उनको यह जानतेथे कि उनके यज्ञ का फल भगवान, ब्रम्हा, भगवान शिव और भगवान विष्णु में किसे मिलेगा।

सर्वोच्च देवताओं का परीक्षण

इसके समाधान के रूप में नारद ने ऋषि भृगु को तीनों सर्वोच्च देवताओं का परीक्षण करने का विचार दिया। ऋषि भृगु ने प्रत्येक भगवान के पास जाने और उनकी परीक्षा लेने का फैसला किया। लेकिन जब वह भगवान ब्रम्हा और भगवान शिव के पास गए तो उन दोनों ने ऋषि भृगु पर ध्यान नहीं दिया जिससे ऋषि भृगु नाराज हो गए। अंत में वह भगवान विष्णु के पास गए और उन्होंने भी ऋषि भृगु पर ध्यान नहीं दिया, इससे ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु की छाती पर लात मार दी। क्रोधित होने के बावजूद भगवान विष्णु ने ऋषि के पैर की मालिश की और पूछा कि उन्हें चोट लगी है या नहीं। इसने ऋषि भृगु को जवाब दिया और उन्होंने निर्णय लिया कि यज्ञ का फल हमेशा भगवान विष्णु को समर्पित होगा।

माता लक्ष्मी जी के वेकुंड छोड़कर जाना

लेकिन भगवान विष्णु की छाती पर लात मारने की इस घटना ने माता लक्ष्मी को क्रोधित कर दिया, वह चाहती थीं कि भगवान विष्णु ऋषि भृगु को दंडित करें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। परिणामस्वरूप उन्होंने वैकुंठ को छोड़ दिया और तपस्या करने के लिए धरती पर आ गई और करवीरापुरा गांव में ध्यान करना शुरू कर दिया। भगवान विष्णु माता लक्ष्मी जी के वेकुंड छोड़कर जाने पर बहुत दुखी थे और उन्होंने माता लक्ष्मी की खोजना के लिए एक दिन वैकुंठ को छोड़ दिया और विभिन्न जंगलों और पहाड़ियों में माता लक्ष्मी की खोज में भटकने लगे भटक। लेकिन उसके बाबजूद भी माता लक्ष्मी को खोज नही पा रहे थे और परेशान होकर भगवान विष्णु जी वेंकटाद्री पर्वत में एक चींटी के आश्रय में विश्राम करने लगे।

भगवान ब्रम्हा और महादेव ने की भगवान विष्णु की मदद

भगवान विष्णु को परेशान देखकर भगवान शिव और भगवान ब्रम्हा ने भगवान विष्णु की मदद करने का फैसला किया। इसलिए वे गाय और बछड़े का रूप लेकर माता लक्ष्मी के पास गए। देवी लक्ष्मी ने उन्हें देखा और चोल राजा को सौंप दिया। लेकिन वह गाय सिर्फ भगवान विष्णु जी के रूप श्रीनिवास को दूध देती थी जिस कारण चरवाहे ने उस गाय को मारने की कोशिश की और भगवान विष्णु जी के रूप श्रीनिवास के चरवाहे पर हमला करके गाय को बचाया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने चोल राजा को एक राक्षस के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। राजा की दया की प्रार्थना सुनकर, भगवान विष्णु जी के रूप श्रीनिवास जी क्रोध शांत हुआ और कहा कि अगले जन्म में मोचन तब मिलेगा जब वह अपनी बेटी पद्मावती का विवाह श्रीनिवास के साथ करेंगे।

तब भगवान विष्णु ने माँ पद्मावती के जन्म तक पृथ्वी पर ही रेहनेका निश्चय किया | माना जाता है की कुछ समय बात माता लक्ष्मी ने राजा की पुत्री के रूप में जन्म लिया था और उनका नाम पद्मावती रखा | कुछ समय बाद श्रीनिवास जी को माता पद्मावती से विवाह करने की इच्छा होई पर श्रीनिवास जी निर्धन होने के कारण पद्मावती के पिता ने विवाह को नाकारा तब श्रीनिवास जी ने कुबेर भगवान से धन ऋण ले लिया | कहा जाता है, भगवन का ये ऋण चुकाने के लिए सभी भक्त गैन तिरुपति बालाजी मंदिर में दान करते हैं |

श्रीनिवास और पद्मावती जी का विवाह

माना जाता है जब श्रीनिवास और पद्मावती जी का विवाह होने वाला तो देवी लक्ष्मी ने इस बारे में सुना और विष्णु का सामना किया। जब लक्ष्मी माँ में विवाह का कारन पूछा तो वे पत्थर में बदल गए। इसके बाद ब्रह्मा और शिव ने हस्तक्षेप किया और उनके इस अवतार के मुख्य उद्देश्य से अवगत कराया। इसके बाद कलियुग के कष्टों से लोगों को बचाने के लिए भगवान् विष्णु जी ने अपने आपको वेंकटेश्वर रूप को तिरुपति माला पर्वत पर स्थापित किया जिन्हें आज पूरे विश्व में तिरुपति बालाजी के नाम से जाना जाता है।

तो मित्रो ये थी भगवान बालाजी की कहानी  | आज के ब्लॉग में बस इतना ही उम्मीद हैं की आपको ब्लॉग अच्छा लगा होगा | अगर आपको ये ब्लॉग अच्छा लगा तो लाइक और शेयर जरूर करे | आप इसका वीडियो यूट्यूब या फेसबुक पर देख सकते है | अगर आप वीडियो Youtube पर देख रहे हो तो channel को Subscribe कीजिये और Facebook पर देख रहे हो तो पेज को फॉलो जरूर करे| इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद |

हर हर महादेव

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