हमारे शास्त्रों और पुराणों में हमें सप्त ऋषियों का बहुत बार वर्णन मिलता हैं | प्राचीन समय में शिक्षा-दीक्षा का काम ऋषि ही करते थे। बड़े से बड़ा राजा का भी कोई गुरु ऋषि ही होते थे | हिंदू मान्यताओं में सप्तर्षि यानी सप्त ऋषि या सात ऋषियों का बड़ा महत्व है।
क्या आपको पता है कि सप्तर्षियों के नाम क्या हैं? सप्त ऋषियों की उत्पत्ति कैसे हुई और उनके काम क्या हैं और ये सातों ऋषियों के गुरु कौन है ? जानेंगे इस ब्लॉग में | नमस्कार दोस्तों में हूँ आकाश और आप सभीका स्वागत हैं द सनातनी टेल्स में
वेदो का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता हैं,
- वेदो का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता हैं,
- विष्णु पुराण के अनुसार सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं|
- महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं
- वर्तमान सप्तम वैवस्वत मन्वंतर में-सप्त ऋषियों के नाम है -
- सप्त ऋषियों का जन्म कैसे हुआ
- सप्त ऋषियों काम क्या है
- सप्त ऋषियों के गुरु कोण हैं?
- सप्त ऋषियों के बारे में
- ऋषि वशिष्ठ
- ऋषि विश्वामित्र
- ऋषि कण्व
- ऋषि भारद्वाज
- ऋषि अत्रि
- ऋषि वामदेव
- ऋषि शौनक
विष्णु पुराण के अनुसार सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं|
- ऋषि वशिष्ठ
- ऋषि कश्यप
- ऋषि अत्रि
- ऋषि जमदग्नि
- ऋषि गौतम
- ऋषि विश्वामित्र
- ऋषि भारद्वाज
इसके अलावा अन्य पुराणों के अनुसार सप्तऋषि की नामावली इस प्रकार हैं:
- ऋषि क्रतु
- ऋषि पुलह
- ऋषि पुलस्त्य
- ऋषि अत्रि
- ऋषि अंगिरा
- ऋषि वशिष्ठ
- ऋषि मरीचि
महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं
एक नामावली में
- ऋषि कश्यप,
- ऋषि अत्रि,
- ऋषि भारद्वाज,
- ऋषि विश्वामित्र,
- ऋषि गौतम,
- ऋषि जमदग्नि
- ऋषि वशिष्ठ के नाम आते हैं
तो दूसरी नामावली के अनुसार सप्तर्षि
- ऋषि कश्यप,
- ऋषि वशिष्ठ,
- ऋषि मरीचि,
- ऋषि अंगिरस,
- ऋषि पुलस्त्य,
- ऋषि पुलह और
- ऋषि क्रतु
वर्तमान सप्तम वैवस्वत मन्वंतर में-सप्त ऋषियों के नाम है –
- ऋषि वशिष्ठ,
- ऋषि कश्यप,
- ऋषि अत्रि,
- ऋषि विश्वामित्र,
- ऋषि गौतम,
- ऋषि जमदग्नि
- ऋषि भारद्वाज,
इन सात ऋषियों को सप्तर्षि कहा जाता है। हर काल में अलग-अलग सप्तर्षि होते हैं।
सप्त ऋषियों का जन्म कैसे हुआ
हमारे शास्त्रों और पुराणों में जैसे पद्मपुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण आदि समेत कई धर्म ग्रंथों में सप्तर्षियों का उल्लेख मिलता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार सप्त ऋषियों की उत्पत्ति ब्रह्माजी के मस्तिष्क से हुई थी।
सप्त ऋषियों काम क्या है
हिंदू मान्यताओं के अनुसार सप्तर्षि की उत्पत्ति इस सृष्टि पर संतुलन बनाने के लिए हुई। उनका काम धर्म और मर्यादा की रक्षा करना और संसार के सभी कामों को सुचारू रूप से होने देना है। सप्तर्षि अपनी तपस्या से संसार में सुख और शांति कायम करते हैं।
सप्त ऋषियों के गुरु कोण हैं?
सप्त ऋषि जिन्हें ब्रह्मा जी ने अपने मस्तिष्क से जन्म तो दिया था पर उनकी शिक्षा का जिम्मा भगवान शिव के पास था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने सर्वप्रथम जिन 7 लोगों को योग, शैव कर्म और वैदिक ज्ञान दिया था वे ही आगे चलकर Saptarishi ke naam से जाने गए। सनातन धर्म में जितने भी धार्मिक ग्रन्थ मौजूद है उनमें सप्त ऋषियों का योगदान किसी से छिपा नहीं है। इसलिए हम कह सकते हैं कि भगवान शिव ही थे जिन्होंने गुरु बनकर सप्त ऋषियों को ज्ञान दिया और सप्त ऋषियों ने उस ज्ञान को संसार में जन-जन तक पहुंचाया।
सप्त ऋषियों के बारे में
ऋषि कश्यप
कश्यप ऋषि की 17 पत्नियां थी। अदिति नाम की पत्नी से सभी देवता और दिति नाम की पत्नी से दैत्यों की उत्पत्ति मानी गई है। शेष पत्नियों से भी अलग-अलग जीवों की उत्पत्ति हुई है।
ऋषि अत्रि
त्रेतायुग में श्रीराम, लक्ष्मण और सीता वनवास समय में अत्रि ऋषि के आ़़श्रम में रूके थे। इनकी पत्नी अनसूया थी। अत्रि और अनसूया के दुर्वासा, चन्द्र और दत्तात्रेय हैं ।
ऋषि भारद्वाज
इनके पुत्र द्रोणाचार्य थे। भारद्वाज ऋषि ने आयुर्वेद सहित कई ग्रंथों की रचना की थी।
ऋषि विश्वामित्र
इन्होंने गायत्री मंत्र की रचना की थी। भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के गुरु थे। विश्वामित्र ही श्रीराम और लक्ष्मण को सीता के स्वयंवर में ले गए थे। विश्वामित्र जब तप कर रहे थे तब मेनका ने इनका तप भंग किया था।
ऋषि गौतम
अहिल्या गौतम ऋषि की पत्नी थीं। गौतम ऋषि ने ही शाप देकर अहिल्या को पत्थर बना दिया था। श्रीराम की कृपा से अहिल्या ने पुन: अपना रूप प्राप्त किया था।
ऋषि जमदग्नि
ऋषि जमदग्नि भगवान परशुराम के पिता थे. | परशुराम ने पिता की आज्ञा से माता रेणुका का सिर काट दिया था। इससे जमदग्नि प्रसन्न हुए और वर मांगने के लिए कहा था। तब परशुराम ने माता रेणुका का जीवन मांग लिया। जमदग्नि ने अपने तप के बल से रेणुका को फिर से जीवित कर दिया था।
ऋषि वशिष्ठ
ऋषि वशिष्ठ राजा दरशरथ के कुल गुरु हुआ करते थे और इनसे ही राजा दशरथ के चारों पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ने शिक्षा प्राप्त की थी। ऋषि वशिष्ठ के कहे अनुसार ही राजा दशरथ ने श्री राम और श्री लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेजा था।
ऋषि कण्व
कण्व वैदिक काल के ऋषि थे सोमयज्ञ को ऋषि कण्व द्वारा ही सम्पन्न किया गया था। राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला के पुत्र भरत का पालन-पोषण ऋषि कण्व के आश्रम में ही हुआ था।
आज के ब्लॉग में बस इतना ही उम्मीद हैं की आपको ब्लॉग अच्छा लगा होगा | अगर ब्लॉग पसंद याइ तो लाइक और share जरूर करे | सनातन धर्म कि कथा सुननेके लिए चैनल /ब्लॉग को subscribe / follow जरूर कीजिये |
इस ब्लॉग को अंत ताक पढणे के लिये बहुत बहुत धन्यवाद
Disclaimer
यहां सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है | यहां यह बताना जरूरी है कि The Sanatani Tales किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें |