मार्कण्डेय ऋषि को कैसे भोलेनाथ से मिला अमरत्व का वरदान

मार्कण्डेय ऋषि को कैसे भोलेनाथ से मिला अमरत्व का वरदान

नमस्कार मित्रो, हर हर महादेव

हमनें बहुत बार मार्कण्डेय ऋषि के बारे में सुना है हिंदू धर्म के पुराणों में मार्कण्डेय ऋषि का पुराण प्राचनीतम माना जाता है। इस पुराण में ऋग्वेद की भांति अग्नि, इंद्र, सूर्य आदि देवताओं पर चर्चा है। धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि अमर हैं। आठ अमर लोगों में से मार्कण्डेय ऋषि का भी नाम आता है। हमने ८ चिरंजीवी कोनसे है इसपर पहलेसेही एक ब्लॉग बनाया हैं | आप उसको यहाँ क्लिक करके अष्ट चिरंजीवी कौन-कौन हैं? देख सकते हैं |

मित्रो आज के ब्लॉग में हम जानेंगे की कैसे अमर बने मार्कण्डेय ऋषि और उनकी जन्म की कहानी क्या है |

मर्कण्डु ऋषि की तपस्या

मित्रो मार्कण्डेय ऋषि जी के पिता का नाम मर्कण्डु ऋषि था | बहुत समय तक उनको संतान की प्राप्ति नहीं हुई तो उन्होंने अपनी पत्नी के साथ भगवान शिव की आराधना करने का निर्णय लिया | फिर मर्कण्डु ऋषि और उनकी पत्नी ने भगवान शिवजी की प्रखर तपस्या की | उनकी इस तपस्या से भगवान शिव प्रकट हुए और उनसे तपस्याका कारन पूछा | तो मर्कण्डु ऋषि ने कहा की वे निसंतान है और उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान जाहिए | तो भगवान् शिव ने कहा की आपको गुणहीन दीर्घायु पुत्र चाहते हैं या गुणवान १६ साल का अल्पायु पुत्र चाहिए । तब मर्कण्डु ऋषि ने कहा कि उन्हें अल्पायु लेकिन गुणी पुत्र चाहिए। भगवान शिव ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

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मार्कण्डेय ऋषि की शिक्षा

तो जैसे जैसे समय बीत रहा वैसे मार्कण्डेय ऋषि सभी प्रकार की शिक्षा ग्रहण करने लगे | जब मार्कण्डेय ऋषि १६ वर्ष के होने वाले थे, तब उनके माता पिता बहुत निराश और दुखी रहने लगे | जब मार्कण्डेय ऋषि ने उनको कारन पूछा तो दोनेने उनके जन्म की कहानी बताई | अपनी मृत्यु के बारे में जानकर वे विचलित नहीं हुए और शिव भक्ति में लीन हो गए।

मार्कण्डेय ऋषि को लेने भगवान यम पधारे

जैसे ही उस बालक की आयु पूरी होने का समय हुआ, यमराज उस बालक के पास प्रकट हो गए, और उन्होंने उस बालक को अपने पाश में जकड़ लिया। इससे उस बालक का ध्यान भंग हो गया, और वह घबराकर उस शिवलिंग से लिपट गया, और जोर-जोर से ओम नमः शिवाय मन्त्र का जाप करने लगा।

मार्कण्डेय ऋषि को भगवन शिव से वरदान

यह सब देख कर भगवान शिव उस शिवलिंग से प्रकट हो गए, और त्रिशूल लेकर यमराज पर झपटे। यमराज घबराकर हाथ जोड़े खड़े हो गए, और बोले, प्रभु यह आप क्या कर रहे हैं, मैं तो आप ही की आज्ञा का पालन कर रहा हूं। आप ही ने तो इस बालक की आयु १६ वर्ष निर्धारित की थी, और अब १६ वर्ष पूर्ण होने के बाद, मैं इसके प्राण लेने आया हूं। तब भगवन शिव ने कहा की आप काल हो और में कालो के काल महाकाल हूँ और में इस बालक को चिरंजीव होने का वरदान देता हूँ | फिर यमराज जी ने हाट जोड़कर प्रमाण किया और खली हात जले गए |

मार्कण्डेय ऋषि को यह अमृत्व का वरदान ऋषियों और संतो के आशीर्वाद के कारण ही प्राप्त हुआ था। उन्होंने अपने बालपन में एक वर्ष तक सभी संतों को सास्टांग प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लिया था, जिसके फलस्वरूप उन्हें सप्तऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। सप्तऋषियों के आशीर्वाद के फलस्वरूप उन्हें ब्रह्माजी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, ब्रह्माजी के आशीर्वाद के फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और उन्हें अमृत्व का वरदान मिला। इसलिए शास्त्रों में संतों के आशीर्वाद की बहुत बड़ी महिमा बताई गयी है।

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हर हर महादेव

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