Mahabharat Stories | शिशुपाल वध कथा | Shishupal vadh ki kahani

Mahabharat Stories | शिशुपाल वध कथा | Shishupal vadh ki kahani

नमस्कार मित्रो हर हर महादेव,

Advertisements

हमारे सनातन धर्म में भगवान कृष्ण जी का पूजन लगभग हर घर में किया जाता है. भगवान कृष्ण एक ऐसे देवता हैं जिन्होंने धरती पर मनुष्य रूप में कई लीलाएं कीं और लोगों को सही-गलत का पाठ सिखाया. यहां तक कि महाभारत काल में भी भगवान श्री कृष्ण की अहम भूमिका थी | मन जाता हैं की महाभारत की कथा भगवान श्री कृष्णा के बिना अधूरी हैं | महाभारत और भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े कई ऐसे किस्से व रहस्य हैं जिनके बारे में लोग जानना चाहते हैं और इसमें सबसे महत्वपूर्ण हैं भगवान श्रीकृष्ण और शिशुपाल का रिश्ता | शिशुपाल रिश्ते में कौरवों और पांडवों का भाई था और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ का पुत्र था | सभी जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की 100 गालियां माफ कर दी थीं लेकिन ऐसी क्या वजह थी कि 101 वीं गाली देने पर उन्हें शिशुपाल का वध करना पड़ा. आइए जानते हैं महाभारत से जुड़े इस किस्से के बारे में आज के ब्लॉग में | नमस्कार मित्रो, में हूँ आकाश और आपका सभी का स्वागत है द सनातनी टेल्स में |

चलिए जानते है शिशुपाल के जन्म की कहानी और भगवान श्री कृष्ण का वचन

पौराणिक मान्यताओ के मुताबिक शिशुपाल वासुदेवजी की बहन और छेदी के राजा दमघोष का पुत्र था, इस तरह से वह भगवान श्रीकृष्ण का भाई था| जब शिशुपाल का जन्म हुआ तो वह विचित्र था | जन्म के समय उसकी तीन आंखे और चार हाथ थे | यह देखकर शिशुपाल के माता पिता बहुत चिंतित हुए | उन्हें लगा कि उनके घर में पुत्र के रूप में कोई राक्षस पैदा हुआ है| इस भय से उन्होंने शिशुपाल को त्यागने का फैसला किया | लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि बच्चे का त्याग न करें, जब सही सयम आएगा तो इस बच्चे की अतिरिक्त आंख और हाथ गायब हो जाएंगे | साथ ही यह भी आकाशवाणी हुई कि जिस व्यक्ति की गोद में आते ही इसके आंख व हाथ गायब होंगे वही इस बच्चे का काल बनेगा |

Advertisements

समय तेजी से बीतने लगा. एक दिन भगवान श्री कृष्ण अपने पिता वासुदेव की बहन यानि अपनी बुआ के घर आए, वहां शिशुपाल को देखकर उनके मन में स्नेह जागा और उसे अपनी गोद में बैठा लिया | भगवान श्री कृष्ण ने जैसे ही बच्चे को गोद में उठाया उस बच्चे की एक आंख व हाथ गायब हो गए. जिसे देखकर भगवान श्रीकृष्ण की बुआ एक ओर प्रसन्न हुईं और दूसरी ओर चिंता में पड़ गईं क्योंकि आकाशवाणी के मु​ताबिक यही बच्चा भगवान श्रीकृष्ण का काल बनने वाला था |

जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ से परेशान होने की वजह पूछी तो आकाशवाणी से जुड़ी सारी बातें उन्हें बताईं | साथ ही भगवान श्रीकृष्ण से यह भी वचन लिया कि वह उनके बेटे की गलती पर उसे माफ कर दें | भगवान अपनी बुआ को दुख नहीं देना चाहते थे, लेकिन विधि के विधान को वे टाल भी नहीं सकते थे. इसलिए उन्होंने अपनी बुआ से कहा कि वे शिशुपाल की 100 गलतियों को माफ कर देंगे लेकिन 101 वीं गलती पर उसे दंड देना ही पड़ेगा. लेकिन इसके साथ ही उन्होेंने बुआ को ये भी वचन दिया कि यदि शिशुपाल का वध करना भी पड़ा तो वध के बाद शिशुपाल को इस जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाएगी. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण वहां से चले आए |

चलिए जानते है शिशुपाल क्यों करता था भगवान श्रीकृष्ण का अपमान

शिशुपाल रुक्मणि के भाई रुक्म का प्रिय मित्र था और रुक्मणि से विवाह करना चाहता था. रुक्म भी यही चाहता था, लेकिन रुक्मणि के माता-पिता अपने बेटी का विवाह शिशुपाल की बजाय श्रीकृष्ण से करना चाहते थे. ऐसे में रुक्म ने माता-पिता की मर्जी के बिना बहन का विवाह शिशुपाल के साथ तय कर दिया और विवाह की तैयारियां शुरू कर दीं. जिसके बाद श्रीकृष्ण रुक्मणि को अपने महल ले आए और उनसे विवाह कर लिया. इस वजह से शिशुपाल श्रीकृष्ण से नफरत करता था और मौका मिलने पर उनका अपमान करने लगता था.

चलिए जानते है क्यों भगवान कृष्णा ने अपने वचन तोड़कर शिशुपाल का वध किया

जब युधिष्ठिर को युवराज घोषित किया तो राजसूय यज्ञ कराया गया. इस अवसर पर सभी संबंधियों और रिश्तेदारों को बुलाया गया. प्रतापी राजाओं को भी आमंत्रण दिया गया. इस मौके पर वासुदेव, श्रीकृष्ण और शिशुपाल आमंत्रित किए गए थे. यहीं पर शिशुपाल का सामना भगवान श्रीकृष्ण से होता है. भगवान श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर ने आदर सत्कार किया. यह बात शिशुपाल को रास नहीं आई और सभी के सामने खड़े होकर इसका विरोध करने लगा. उसका कहना था कि एक मामूली ग्वाले को इतना सम्मान क्यों दिया जा रहा हैं जबकि इस अवसर पर कई वरिष्ठि और सम्मानीय जन मौजूद हैं.

भगवान श्रीकृष्ण शांत मन से पूरे आयोजन को देख रहे थे. लेकिन शिशुपाल उन्हें अपमानित करने लगा और उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग करने लगा | यह सुनकर शिशुपाल को मार डालने के लिए पांडव और अन्य सदस्य क्रोधित होकर हाथों में हथियार ले उठ खड़े हुए, किंतु श्रीकृष्ण ने उन सभी को रोक दिया। वहां वाद-विवाद होने लगा, परंतु शिशुपाल को इससे कोई घबराहट न हुई। कृष्ण ने सभी को शांत कर यज्ञ कार्य शुरू करने को कहा।

किंतु शिशुपाल को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने फिर से श्रीकृष्ण को ललकारते हुए गाली दी, तब श्रीकृष्ण ने गरजते हुए कहा, ‘बस शिशुपाल! मैंने तेरे एक सौ अपशब्दों को क्षमा करने की प्रतिज्ञा की थी इसीलिए अब तक तेरे प्राण बचे रहे। अब तक सौ पूरे हो चुके हैं। अभी भी तुम खुद को बचा सकने में सक्षम हो। शांत होकर यहां से चले जाओ या चुप बैठ जाएं, इसी में तुम्हारी भलाई है।’

लेकिन शिशुपाल पर श्रीकृष्ण की चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ अतः उसने काल के वश होकर अपनी तलवार निकालते हुए श्रीकृष्ण को फिर से गाली दी। शिशुपाल के मुख से अपशब्द के निकलते ही श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला दिया और पलक झपकते ही शिशुपाल का सिर कटकर गिर गया। उसके शरीर से एक ज्योति निकलकर भगवान श्रीकृष्ण के भीतर समा गई।

आज के ब्लॉग में बस इतना ही उम्मीद हैं की आपको ब्लॉग अच्छा लगा होगा | अगर आपको ये ब्लॉग अच्छा लगा तो लाइक और शेयर जरूर करे | आप इसका वीडियो यूट्यूब या फेसबुक पर देख सकते है | अगर आप वीडियो Youtube पर देख रहे हो तो channel को Subscribe कीजिये और Facebook पर देख रहे हो तो पेज को फॉलो जरूर करे| इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद |

हर हर महादेव

0 Shares

Disclaimer

यहां सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है | यहां यह बताना जरूरी है कि The Sanatani Tales किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll-to-top