श्री कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की कहानी | Shri Krishna Govardhan Parvat ki Kahani

श्री कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की कहानी | Shri Krishna Govardhan Parvat ki Kahani

नमस्कार मित्रो, हर हर महादेव |

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हमारे देश में दिवाली के उत्सव में एक सबसे ख़ास पर्व होता है गोवर्धन का। दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में बहुत महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों की पूजा की जाती है।

इस दिन मुख्य रूप से गोबर से बने गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और घर की समृद्धि का आशीष मांगा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गोबर से बना पर्वत घर की सभी समस्याओं का निवारण करता है और सुख समृद्धि का प्रतीक होता है। वैसे तो इस त्योहार को मनाने के पीछे कई कारण जुड़े हैं, लेकिन इसका इतिहास श्री कृष्ण की कथाओं से संबंधित होता है। भगवान श्री कृष्ण ने बाल्यकाल में कई लीलाएं रची थी। कई असुरों का वध किया था और कई बार वृन्दावन वासियों की रक्षा की थी। पर एक बार उन्होंने वृन्दावन की रक्षा एक असुर या राक्षस से नहीं बल्कि देवराज इंद्र से भी की थी। उस समय उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपने छोटी ऊँगली पर उठाया था। परन्तु क्या आप सबने सोचा है की भगवान श्री कृष्ण ने अपनी छोटी ऊँगली में ही गोवर्धन को धारण क्यों किया । इसके पीछे एक कारण है जो जानेंगे आज के ब्लॉग में | नमस्कार मित्रो, में हूँ आकाश और आपका सभी का स्वागत है द सनातनी टेल्स में |

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गोवर्धन पूजन के त्योहार का आरंभ

गोवर्धन पूजन के त्योहार का आरंभ द्वापर युग से माना जाता है क्योंकि कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अंहकार दूर करना था | भगवान इंद्र सभी देवताओं में सबसे उच्च हैं और साथ ही उन्हें स्वर्ग का राजा कहा जाता है. कथा के मुताबिक भगवान इंद्र को अपनी शक्तियों और पद पर घमंड हो गया था जिसे चकनाचूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची.

गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में एक बार देवराज इंद्र को अपने ऊपर अभिमान हो गया था। इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक अद्भुत लीला रची। श्री कृष्ण में देखा कि एक दिन सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे थे और किसी पूजा की तैयारी में व्यस्त थे। इसे देखते हुए भगवान कृष्ण जी ने माता यशोदा से पूछा कि यह किस बात की तैयारी हो रही है?

भगवान कृष्ण की बातें सुनकर यशोदा माता ने बताया कि भगवान इंद्रदेव की सभी ग्राम वासी पूजा करते हैं जिससे गांव में ठीक से वर्षा होती रहे और कभी भी फसल खराब न हो और अन्न धन बना रहे। भगवन इंद्र, देवताओं और बादलों के स्वामी हैं। वे समस्त जगत के रक्षक हैं। उन्हीं के कारण वर्षा होती है। वर्षा के कारण ही हमारी सारी फसलें लहलहाती हैं, हमारे पशुओं को चरने के लिए घास मिलती है, पानी की कमी नहीं होती। इंद्र के आदेश से ही बादल एकत्रित होते हैं और वर्षा करते हैं। उस समय लोग इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए अन्नकूट चढ़ाते थे। यशोदा मइया ने कृष्ण जी को यह भी बताया कि इंद्र देव की कृपा से ही अन्न की पैदावार होती है और उनसे गायों को चारा मिलता है।

इस बात पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि फिर इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा होनी चाहिए क्योंकि गायों को चारा वहीं से मिलता है। इंद्रदेव तो कभी प्रसन्न नहीं होते हैं और न ही दर्शन देते हैं। इस बात पर बृज के लोग इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह देखकर इंद्र देव क्रोधित हुए और उन्होंने मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। इंद्रदेव ने इतनी वर्षा की कि उससे बृज वासियों को फसल के साथ काफी नुकसान हो गया।

ब्रजवासियों को परेशानी में देखकर भगवान श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी ब्रजवासियों को अपने गाय और बछड़े समेत पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए कहा। इस बात पर इंद्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हो गए और उन्होंने वर्षा की गति को और ज्यादा तीव्र कर दिया। तब भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आदेश दिया वह पर्वत के ऊपर जाकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें ओर शेष नाग को कहा वो पानी को पर्वत के पास आने से रुके|

इंद्र लगातार सात दिन तक वर्षा करते रहे फिर भी सभी ब्रजवासी गोवर्धन की छाया में सुख पूर्वक रहे | यह देखकर इंद्र को शंका हुई की उनका मुक़ाबला करने वाला कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकता तभी ब्रमा जी वहाँ प्रकट हुए ओर इंद्र से बोले आप जिस बालक को परास्त करने के कोशिश कर रहे है वो ओर कोई नहीं भगवान श्री हरि है वो पूर्ण पुषोतम नारायण है यह सुनकर इंद्र ने भगवान श्री कृष्ण से अपनी भूल की माफ़ी माँगी और उनकी पूजा करके अन्नकूट का 56 तरह का भोग लगाया। तभी से गोवर्घन पर्वत पूजा की जाने लगी और श्री कृष्ण को प्रसाद में 56 भोग चढ़ाया जाने लगा।

चलिए जानते है कैसे मनाते हैं गोवर्धन त्योहार?

मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं. इसलिए लोग खाद्य पदार्थ का प्रयोग कर घर पर ही गोवर्धन पर्वत, गाय,बैल, पेड़ की आकृति बनाते हैं और उन्हें भगवान श्री कृष्ण का अवतार मानकर उनकी पूजा करते हैं. इस दिन गाय, बैल, भैंस जैसे पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है. गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल, दही और तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है और परिक्रमा करते हैं.

चलिए जानते है गोवर्धन पर्वत गोबर का क्यों बनाया जाता है|

ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्ण को गायों से अत्यंत प्रेम था और वो गायों तथा बछड़ों की सेवा किया करते थे। यह भी माना जाता है कि गाय का गोबर अत्यंत पवित्र होता है, इसलिए इसी से गोवर्धन पर्वत बनाना और इसका पूजन करना फलदायी माना जाता है। इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है और इसके चारों कोनों में करवा की सींकें लगाईं जाती हैं। इसके भीतर कई अन्य आकृतियां भी बनाई जाती हैं और इसकी पूजा की जाती है। (गोवर्धन के दिन गाय की पूजा का महत्व)

ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी गोवर्धन की इस कथा का पाठ करता है और श्रद्धा पूर्वक गाय के गोबर से बने पर्वत की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती।

तो मित्रो ये थी गोवर्धन पूजा की कहानी | आज के ब्लॉग में बस इतना ही उम्मीद हैं की आपको ब्लॉग अच्छा लगा होगा | अगर आपको ये ब्लॉग अच्छा लगा तो लाइक और शेयर जरूर करे | आप इसका वीडियो यूट्यूब या फेसबुक पर देख सकते है | अगर आप वीडियो Youtube पर देख रहे हो तो channel को Subscribe कीजिये और Facebook पर देख रहे हो तो पेज को फॉलो जरूर करे| इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद |

हर हर महादेव

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